जब जब संसद में केन्द्रीय बजट का समय आता है तब आपने अक्सर आयकर, आयकर रिटर्न, टीडीएस, आयकर से छूट, और कटौतियाँ जैसे शब्द सुने होंगे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में आयकर से सम्बंधित इन शब्दों का मतलब क्या होता है? चलिए, आज भारत में आयकर एवं आयकर से जुड़े हुए शब्दों को सरल भाषा में समझते हैं। इस लेख में, हम भारत में कराधान से जुड़े सभी महत्वपूर्ण प्रावधानों पर विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि आपको इसकी बेसिक जानकारी मिल सके।
आयकर क्या होता है?
इनकम टैक्स या आयकर एक प्रकार का डायरेक्ट
टैक्स होता है जिसे करदाता द्वारा साल में एक बार भरा जाता है, हर वो व्यक्ति, कॉर्पोरेट कंपनी,
स्थानीय
प्राधिकरण या संगठन जो आयकर हेतु निर्धारित मापदंड को पूरा करते हैं उन्हें कानूनी
तौर पर सरकार को टैक्स देना होता है। अगर किसी व्यक्ति या कंपनी की आय उस वित्त
वर्ष (Financial
year) में आयकर अधिनियम
के मानदंडों को पूरा करती हैं तो उसे उस आय पर कर देना होता है.
भारत में आयकर व्यक्तियों या कंपनियों के आय
पर निर्भर करता है,
कम आय पर आयकर
और उच्च आय कर अधिक आयकर दर लगता है। वर्तमान में, भारत में इनकम टैक्स का चक्र 1 अप्रैल से
शुरू होकर और
अगले वर्ष के 31
मार्च को समाप्त
होता है। आयकर को समझने से पहले हम कर के प्रकार को समझते है.
- भारत में आयकर सरकार द्वारा, करदाता द्वारा संबंधित वित्तीय वर्ष में अर्जित कुल आय पर लगाया जाता है।
- आयकर एक प्रत्यक्ष कर होता है, क्योंकि आयकर का भुगतान करदाता द्वारा स्वयं किया जाता है और कर का बोझ अप्रत्यक्ष करों की तरह आगे नहीं डाला जा सकता।
- प्रत्येक करदाता (आयकर अधिनियम में इसे "Assesse" कहा गया है) जो आयकर अधिनियम के मापदंड को पूरा करता है, उसे कानून द्वारा टैक्स रिटर्न फाइल करना अनिवार्य होता है।
- आयकर रिटर्न नहीं भरने पर जुर्माना के साथ ब्याज और आयकर विभाग द्वारा जाँच की कार्रवाई हो सकती है।
- भारत में व्यक्तियों के लिए आयकर की प्रगतिशील कर दर लागू है, मतलब करदाता की आय बढ़ने पर कर की दर भी बढ़ती जाती है।
- आयकर के प्रभाव करदाता के कानूनी इकाई, आयु, आवासीय स्थिति और आय की प्रकृति के आधार पर अलग-अलग होते हैं।
भारत में कर (TAX) के प्रकार?
प्रत्यक्ष कर (Direct TAX) :
ऐसे कर जिसका भुगतान करदाता द्वारा सीधे सरकार
को किया जाता है इसकी समस्त जिम्मेदारी करदाता की ही होती है. कर का आकलन सरकार
द्वारा सीधे किया जाता है जैसे : इनकम टैक्स और कॉर्पोरेट टैक्स.
अप्रत्यक्ष कर (Indirect TAX) :
Indirect TAX ऐसे कर होते
हैं जिनका भुगतान करदाता द्वारा सीधे सरकार को नहीं किया जाता है. जब आप किसी वस्तु की खरीदारी या किसी तरह की
सेवा का लाभ लेते हैं तब आप Indirect Tax का भुगतान करते हैं। जैसे : वैट (वैल्यू एडेड टैक्स) और जीएसटी (गुड्स एंड सर्विस टैक्स)।
किन्हें आयकर भरने की जरुरत है?
भारत में आयकर अधिनियम के
अनुसार, हर व्यक्ति या
व्यवसाय, चाहे उनकी कमाई
कितनी भी क्यों न हो, को आयकर देना
अनिवार्य है। लेकिन, केन्द्रीय बजट 2025 में प्रावधान
किया गया है कि केवल उन्हीं
लोगों को आयकर देना होगा जिनकी वार्षिक आय 12 लाख रुपये से अधिक है (75 लाख रुपये की स्टैंडर्ड डिडक्शन को मिलाकर 12.75 लाख रुपये)। निम्नानुसार
आयकर के भुगतान हेतु वर्ग हैं यदि उनकी कुल आय आयकर हेतु निर्धारित दायरे में आती
है –
- नौकरी में संलग्न व्यक्ति
- स्व-रोजगार करने वाला व्यक्ति (अपना व्यवसाय करने वाला)
- हिंदू अविभाजित
परिवार (HUF)
- कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त आर्टिफीशियल पर्सन
- बॉडी ऑफ़ इंडीविजुअल (बीओआई)
- व्यक्तियों का
संघ (AOP)
- कंपनियों और कॉर्पोरेट फर्म
- स्थानीय अथॉरिटी
भारत में आयकर की दर
भारत में कुल आय पर कर आयकर की दरों के अनुसार लगाया जाता है। ये दरें एक व्यक्ति
एक वर्ष में अर्जित आय पर निर्भर करता है। आयकर की दरें सालाना आय के अनुसार बदलती
रहती हैं। समय-समय पर ये दरें संशोधित भी की जा सकती हैं और इनका ऐलान केन्द्रीय
बजट में किया जाता है। वित्तीय वर्ष 2025-2026 और आकलन वर्ष 2026-2027 के लिए नया
टैक्स स्लैब निम्नलिखित है:
(Income Tax Slab for NEW Tax Regime)
नई कर व्यवस्था और इसकी स्लैब दरें आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 115BAC का हिस्सा हैं।
बजट 2025 की घोषणा के हिस्से के रूप में, नई आयकर स्लैब
दरें पेश की गई हैं और ये 1 अप्रैल, 2025 के बाद अर्जित आय
पर लागू होंगी। AY 2026-27 के लिए नई कर व्यवस्था
स्लैब दरें नीचे दी गई हैं:
कर योग्य आय |
आयकर की दर |
रूपये 4,00,000.00 तक |
निरंक |
रूपये 4,00,001.00 से रूपये 8,00,000.00 तक |
5 प्रतिशत |
रूपये 8,00,001.00 से रूपये 12,00,000.00 तक |
10 प्रतिशत |
रूपये 12,00,001.00 से रूपये 16,00,000.00 तक |
15 प्रतिशत |
रूपये 16,00,001.00 से रूपये 20,00,000.00 तक |
20 प्रतिशत |
रूपये 20,00,001.00 से रूपये 24,00,000.00 तक |
25 प्रतिशत |
रूपये 24,00,000.00 से अधिक |
30 प्रतिशत |
(Income Tax Slab for OLD Tax Regime I Individual upto 60 Years)
जैसा कि पहले बताया गया है, केंद्रीय बजट 2025 की घोषणा में पुरानी कर व्यवस्था के लिए वित्त वर्ष 2024-25 की आयकर स्लैब
दरों को बरकरार रखा गया है। इसलिए, वित्त वर्ष 2025-26 में 60 वर्ष तक की आयु वाले वेतनभोगी और स्व-रोजगार वाले
व्यक्तियों के लिए पुरानी कर व्यवस्था के तहत आयकर स्लैब दरें इस प्रकार होंगी:
कर योग्य आय |
आयकर की दर |
रूपये 2,50,000.00 तक |
निरंक |
रूपये 2,50,001.00 से रूपये 5,00,000.00 तक |
5 प्रतिशत |
रूपये 5,00,001.00 से रूपये 10,00,000.00 तक |
20 प्रतिशत |
रूपये 10,00,001.00 से अधिक |
30 प्रतिशत |
(Income Tax Slab for OLD Tax Regime for Senior Citizens)
नई कर व्यवस्था के स्लैब और दरें सभी व्यक्तिगत करदाताओं पर लागू होती हैं, चाहे उनकी उम्र
कुछ भी हो। हालाँकि, 60 वर्ष से 80 वर्ष से कम आयु
के व्यक्तिगत करदाताओं को वरिष्ठ नागरिक के रूप में नामित किया गया है और उन्हें
पुरानी कर व्यवस्था के तहत उच्च छूट सीमा मिलती है। नीचे दी गई तालिका AY
2026-27 में वरिष्ठ नागरिक करदाताओं के लिए पुरानी कर व्यवस्था के
तहत आयकर स्लैब और दरों को दर्शाती है:
कर योग्य आय |
आयकर की दर |
रूपये 3,00,000.00 तक |
निरंक |
रूपये 3,00,001.00 से रूपये 5,00,000.00 तक |
5 प्रतिशत |
रूपये 5,00,001.00 से रूपये 10,00,000.00 तक |
20 प्रतिशत |
रूपये 10,00,001.00 से अधिक |
30 प्रतिशत |
स्वास्थ्य और शिक्षा उपकर
हर कर-दाता को देय
आयकर का 4%
स्वास्थय और
शिक्षा उपकर देना अनिवार्य होता है फिर चाहे उस पर कोई भी टैक्स दर क्यों ना लगती
हो!
क्या रिटर्न भरना अनिवार्य है?
- भारत में आयकर से जुड़ी किसी भी प्रकिर्या की ज़िम्मेदारी आयकर विभाग की होती है।
- हर वित्तीय वर्ष के अंत में, हर कर-दाता को अपनी कमाई या फिर आय आयकर विभाग के सामने, सरकार द्वारा निर्धारित की गयी फार्म में घोषित करनी होती है।
- हर व्यक्ति और संस्था, जिसे भारत से आय प्राप्त हो रहा है, TDS भरने के साथ ही उसके लिए रिटर्न भरना अनिवार्य होता है।
- ये ITR (इनकम टैक्स रिटर्न फॉर्म ) में एक विशेष वित्तीय वर्ष में अर्जित आय को सामने रखा जाता है।
- कमाई व्यवसाय, वेतन, पेंशन, आवास संपत्ति से आय या पूंजीगत लाभ से भी हो सकती है।
जुर्माने से किस तरह बचे
- जब आप आयकर रिटर्न फॉर्म भरते हैं, आप सरकार को अपनी आय और उस पर भरे टैक्स के बारे में जानकारी साझा करते हैं।.
- जब आप इनकम टैक्स रिटर्न भरते हैं, तो वो आपकी कमाई का सबूत होता है जिस पर आपने टैक्स भरा है।
- आयकर अधिनियम के अनुसार, हर साल ITR भरना अनिवार्य है।
- ITR ना भरने से गंभीर मुसीबत हो सकती है। आयकर विभाग आपको टैक्स डिफ़ॉल्टर मान सकता है।
- इनकम टैक्स विभाग आप पर जुर्माना लगा सकता है।
- अगर आपने ज़रूरत से ज्यादा टैक्स भर दिया है, तो आपको अतिरिक्त रकम वापस मिल जाती है।
आय के प्रकार जिस पर आयकर लगता है
आयकर अधिनियम 1961 के नियमों के अनुसार, जब आपका आय कर के दायरे हो तो निम्न प्रकार के आय पर कर देना अनिवार्य होता है :
- वेतन से प्राप्त होने वाला आय
- पूंजीगत लाभ से होने वाला आय
- आवास संपत्ति के बिक्री या किराया से प्राप्त आय
- व्यापार द्वारा अर्जित आय
- अन्य आय जैसे लॉटरी और अन्य कानूनी जुआ, लाभांश आय, आदि.
आयकर अधिनियम के अंतर्गत आयकर से छूट
आपको जानकारी होगी की करदाता आयकर
अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत टैक्स छूट की मांग कर सकता है जो की इस प्रकार हैं :
- धारा 80TTA के तहत, बैंक बचत खता पर प्राप्त ब्याज़ पर टैक्स नहीं लगता है।
- धारा 80CCG के तहत, राजीव गाँधी बचत योजना में निवेश पर टैक्स छूट मिलती है।
- धारा 80D के तहत, अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी, बच्चों या खुद के लिए, मेडिकल इंश्योरेंस के प्रीमियम का भुगतान करता है, तो वो इनकम टैक्स भरते समय 25000 रु. तक की टैक्स छूट की मांग कर सकता है। वरिष्ट नागरिकों के लिए ये सीमा 30,000 रु. तक लागू की गयी है। इसके अतिरिक्त, हर परिवार को एक साल में मेडिकल जांच कराने पर 5,000 रु. तक की टैक्स छूट मिल सकती है।
- धारा 80DD के तहत, यदि किसी करदाता का पारिवारिक सदस्य 40% अपंग है और आप उसके इलाज के लिए खर्च कर रहे हैं, तो आप 75,000 रु. की टैक्स छूट के लिए दावा कर सकते हैं।
- धारा 80DD के तहत, यदि कोई व्यक्ति किसी बिमारी के इलाज के खर्च कर रहा है जैसे कैंसर, न्यूरोलॉजीकल बीमारियाँ, AIDS आदि तो उसे 40,000 रु. की टैक्स छूट मिल सकती है।
- यदि आपने शिक्षा लोन लिया है और उसका ब्याज़ भर रहे हैं, तो धारा 80E के तहत, आपको टैक्स छूट मिल सकती है। हालांकि, अगर आप शिक्षा लोन की सूद रकम भर रहे हैं, तो आप इसके लिए योग्य नहीं हैं।
- धारा 80G, 80GGए, 80GGB, 80GGC, के तहत, अगर किसी व्यक्ति ने चंदा दिया है तो वो टैक्स छूट के लिए दावा कर सकता है।
- 2019 के बजट में नौकरीपेशा लोगों को मेडिकल और ट्रांसपोर्ट खर्च के लिए 40,000 रु. की टैक्स छूट मिल सकती है। इस छूट के लिए असली बिल जमा करने की ज़रूरत भी नहीं है।
इनकम टैक्स रिबेट क्या होता हैं?
- क्या आप इनकम टैक्स एक्सेम्प्शन, इनकम टैक्स रिबेट और इनकम टैक्स डिडक्शन बारे में जानते हैं, यदि नहीं तो चलिए इनके बारे में जानते हैं :
- इनकम टैक्स रिबेट एक तरह का रिफंड है जो आपको आयकर अधिनियम की धारा 87A के तहत इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करने पर मिलता है।
- अगर आप इनकम टैक्स भरते समय टैक्स छूट के लिए निवेश/खर्च के दस्तावेज देना भूल जाते हैं और सरकार आपका इनकम टैक्स काट लेती है तो आप ITR फाइल करते समय उन निवेश/खर्च के दस्तावेज देकर काटे गए इनकम टैक्स की वापसी की मांग कर सकते हैं।
- वो ही व्यक्ति रिबेट के लिए योग्य है जो भारतीय निवेसी हो, उम्र 80 वर्ष से कम हो और जिसकी वार्षिक आय 5 लाख रु. या कम हो।
- हिन्दू अनडिवाइडेड फैमिली, कंपनी, ट्रस्ट, LLP, पार्टनरशिप फर्म और अनिवासी भारतीय (NRI) टैक्स रिबेट के लिए योग्य नहीं हैं।
टैक्स डिडक्शन और एक्सेम्प्शन में क्या अंतर होता है?
- टैक्स एक्सेम्प्शन और टैक्स डिडक्शन, दोनों से सरकार द्वारा आयकर से रहत प्रदान करती है।
- टैक्स एक्सेम्प्शन से आशय उस आय से है जिस पर सरकार द्वारा कर नहीं लगाया जाता है। जैसे, 2.5 लाख रु. से कम की वार्षिक कमाई पर आयकर नहीं देना होता है।
- वहीं टैक्स डिडक्शन की बात करें तो व्यक्ति की कुल आय से उन निवेश और खर्च को घटा दिया जाता है जिस पर सरकार टैक्स छूट देती है और उसके बाद बची आय पर टैक्स लगाया जाता है।
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